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Damyanti Bhatt

Classics

4  

Damyanti Bhatt

Classics

सन्नाटा

सन्नाटा

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360

अधरों पर शोर

हृदय का सन्नाटा

नदी के दो किनारों जैसा

बना जीवन


बचपन मैं

भेदभाव

ससुराल के तानों से

नहीं टूटी

पर 

बुत सी बन गयी

हर धडकन मेरी

 जिंदगी मिली है

जी नहीं पा रही


जीने का सलीका नहीं आ रहा

बस जी रही हूं

सांसें चल रही हैं।


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