संघर्षमयी जीवन सावित्री बाई फुले
संघर्षमयी जीवन सावित्री बाई फुले
किसान के खेतों में पली बढ़ी,
नौ वर्ष की आयु में ब्याही थी,
साहस की अजब दीवानी वो,
काँटों की राह पर चल कर,
मंजिल पाने के ठानी थी।।
पाठशाला सच्चा गहना है,
माँ फूले का यही कहना है,
ज्ञानपरक यथार्थ बनो,
संघर्षों की राह अपनाकर,
स्वावलंबी इंसान बनो।।
अज्ञानता को धर दबोचो,
जीवन से दूर भगा दो,
विश्वास का संचय करके,
मान अपमान को सहकर,
मुश्किल का अवसाद बनो।।
विद्या बिना जीवन व्यर्थ है,
जन पशु समान,
सावित्री माँ कहे,
निठल्ले बनकर मत बैठो रे !
शूल का बिछौना ही
सफलता का समाधान ।।
माँ फूले बाई बताती सभी को,
विद्वान की अलग पहचान,
कमल हो चाहें कीचड़ में,
संघर्षों की वेदना पाकर भी,
श्री चरणों में पाता सम्मान ।।
दीन दुखियों के दुःख दूर कर,
महिलाओं को अधिकार दिलाए,
अस्पृश्य समुदाय को जागृति से,
पुनर्विवाह की प्रोत्साहित करके,
शिक्षा की बगिया को महकाएँ ।।
मराठी साहित्य का उत्थान करके,
गरीबों के अस्पताल भी खुलवाए,
कठिनतम वक्त को निर्गत कर ,
राष्ट्र माँ का डाक टिकट जारी पर,
परिश्रम ने जगत में मान पाया ।।
प्रथम राष्ट्र की शिक्षिका महिला,
कीचड़ के शूलों पर चल कर,
हर बेटी के सपनों की उम्मीदों से,
काँटों की राह पर चलकर,
सफल बनने की,
सावित्री बाई फुले की कहानी थी।।
राष्ट्र माँ के जीवन को अपना लें,
मुश्किल से मुश्किल राहों को,
हँसते हुए बिसारें,
फूले माँ के संघर्षों को,
नव सवेरे से, पुनः संवारें।।
