संघर्ष
संघर्ष
जेठ की तपती इस दुपहरी में,
तृण-तृण मृत-प्राण बना देने वाली उस धूप में,
मेहनतकशों को आज मैंने खेतों में कुछ गढते देखा है।।
सुख-सुविधाभोगी इस संसार में,
तथा आराम की जिन्दगी जीने वालों के बीच में,
कुछ लोगों को झुग्गी-झोपड़ियों में दिन काटते देखा है।।
नारी पूजक आज इस समाज में,
और मानवाधिकारों की रक्षक इन सरकारों में,
हो रही वीभत्स घटनाओं से उन्हें खुद को लड़ते देखा है।।
तकनीकी शिक्षा के इस युग में,
रोजगार के मिल रहे आज विभिन्न अवसरों में,
दर-दर भटकते नवयुवकों को चौराहों पर खड़े देखा है।।
आजादी के अमृत महोत्सव में,
स्वर्णिम भारत की बनती आज परिकल्पना में,
कुछ लोगों को दो जून की रोटी हेतु संघर्ष करते देखा है।।