संघर्ष ओर अस्तित्व
संघर्ष ओर अस्तित्व
एक पेड़ हरा भी,
तन कर खड़ा भी,
आँधियों से वो लड़ा भी,
आँधियों में पत्ता झड़ा भी,
चन्द धूल उस पर पड़ा भी,
बारिश से धूल गिरा भी,
ग्रीष्म में ठूठ अधमरा भी।
पावस रस से मन भरा भी।
बांझपन में था अधूरा भी।
कभी फलों से हुआ वो पूरा भी।
हालात कभी अच्छा,
तो कभी रहा बुरा भी।
नभ में लहराया ज़रूर,
पर रहा जमीन से जुड़ा भी।
आज जहां जड़ है इसका,
कल बनेगा यहीं मक़बरा भी।
ये जान कर भी,
पेड़ तन कर खड़ा भी।
पहले जैसा हरा भी।
दिन पर दिन होता और बड़ा भी।
