संगदिल
संगदिल
उतर गए तुम अब मन से, बदल गए हो प्रिय तुम जब से
भूल गए हो तुम वो दौर, भाता नहीं था तुम्हें कोई और
वादा किया जो साथ देने का, मुकर गए जब वक़्त आया... दोस्ती निभाने का
हैरान हूँ कि तुम बुजदिल निकले, रिश्ते निभाने में तुम संगदिल निकले
मैं भी चल पड़ी हूँ अब तेरी गली से, निकलना चाहती हूँ... भावनाओं की दलदली से
अब तुम रास्ते में कभी मत टकराना
मेरा तो लगा रहेगा.. तेरे सपनों में आना जाना

