संदर्भ
संदर्भ
मेरी मुट्ठी में कुछ तो था,
जो हथेली से फिसल गया था,
कुछ तो थोड़ा बाकी रह गया था,
ये मन ना जाने किस चौराहे छूट गया था,
मैं आहिस्ता सुनने की कोशिश करता हूं,
पर इस शोर के अंतिम अंतरा में खुद को खाली पाता हूं,
इन पन्नों की सरसराहट में कुछ पाकर मैं तृप्त हो जाता हूं,
पन्नों को सुरीली रूबाई से भर देता हूं,
आरंभ को लिख मैं सारांश की खोज में हूं,
जैसे किसी शहर की अरसे से बंद कच्ची कोई गली हो,
जिसका फेरा अरसे से किसी ने ना किया हो,
सब कहकर भी मानो कोई चुप हो,
बंद किताब की गूंज उठी सिहाई हो,
किसी दर मैं अपनी पोटली भूल आया,
पैरो की चप्पल को खो कर कुछ निशान साथ ले आया,
आंखों को तपिश से रूबरू करवा मैं रात को नाराज़ कर आया,
सारी कहानी संगम के घाट पर सुना आया,
मैं वापसी में बस संदर्भ और किस्सा ले आया।।