समय
समय
समय पानी-सा ही तो होता है
एक बार फिसल गया तो,
गया।
वापस लौट कर नहीं आता।
बिल्कुल तुम्हारे
बहु-विकल्प प्रश्नों जैसा,
जिसका एक उत्तर,
तुम्हें सीढी के दोनों सिरों पर
पहुँचाने की क्षमता रखता है।
पर हम सर्व गुण सम्पन्न
समय को फिसलने देते हैं,
प्रश्नों को हल्के में लेते हैं
इसलिए किस्मत पर रोते रहते हैं,
खुद ही अपने से झूझते रहते हैं,
अपने ही प्रश्नों में उलझे रहते हैं,
अपनी कमियाँ दूसरों पर थोपते रहते हैं,
हर क्षण यूँ ही व्यर्थ करते रहते हैं
इसलिए सदा भटकते रहते हैं
उठो
समय को अपना गुलाम बना दो,
हर प्रश्न को मात दे
अपने आज और कल को
खुशबुओं से महका दो।
अपने और दूसरों के जीवन मेंं
उज्जाला भर दो।
उसने जो जीवन दिया है
उसे साकार कर दो।
समय की फिर धारा
बदल दो।