एक बार यहां
एक बार यहां
एक बार सीता का अपहरण हुआ
तो हनुमान ने लंका दहन कर दिया।
वंश नष्ट हो गया रावण का।
दुशासन ने द्रौपदी की साड़ी खींची
दुर्योधन ने उसे जंघा में स्थान देना चाहा।
अंत हो गया दुशासन का।
भीम ने चीर दिया शरीर दुर्योधन का।
हमारी परंपरा ही नहीं थी
कैंडिल मार्च, नारेबाजी, आंदोलन
हमने स्त्री सम्मान में अपराधियों के
समूल को नष्ट करना सीखा है।
परंतु आज क्या करोगे
बेटी को बढ़ा कर
बेटी को पढ़ा कर
वहशियों को सबूत के बिनाह
पर तारीख देकर रिहाई दी
जाती है।
सजाएं तो बेटियों को मिलती है
जीते जी और मरने के बाद भी।
हमें अपनी पुरातन सीख की
ओर लौटना है।
बलात्कारियों का समूल नष्ट
करना होगा।
जिस धर्म का हो अपराधी,
उसे उसी की सरियत
उसी के कानून से नपुंसक बनाकर
बिलबिलाने वाली मौत देनी होगी।
अब न्याय पालिका अन्याय की
पालक है।
पुलिस ठेकेदार है नेताओं की।
न्यायालय में कैद है न्याय।
उठो लड़ो और कोर्ट पुलिस के बिना
अपराधियों का समूल नष्ट कर दो।
ना कोर्ट ना तारीख ना जेल ना बेल।
सिर्फ सजा और सजा ही लिख दो
उस बलात्कारी के जिस्म में।
भले ही यह देश तुम्हें गुनहगार
मानकर
सलाखों के पीछे भेज दे।
यह बदला ही इस क़ैद में तुम्हें
सुकून तो देखा।