समय का स्वभाव ये भी !
समय का स्वभाव ये भी !
अक्सर
नजर में आकर भी
पता नहीं पड़ता की
ये धुआं है या
बस कुहासा है
समय के होम का।
अपने ही अंदर
चलती खामोश बातें
हमें साफ क्यों
सुनाई नहीं आतीं
ये शोर
किसका है
जो बहरा कर देता है
हमें उस वास्तविकता से
जो सदियों से
अनवरत
एक चक्र में चलती
आ रही है
यथा
जरा की
जन्म मृत्यु।
और तब
अहसास होता है
समय का
स्वभाव एक ये भी है,
चुपचाप
कोलाहल, कलरव के नीचे
सब धीमे धीमे
स्वाहा कर देने का।