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S Ram Verma

Abstract

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S Ram Verma

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स्मृतियाँ!

स्मृतियाँ!

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स्मृतियाँ!

तुम्हारी स्मृतियाँ 

शर्दी की एक सुबह 

के कोहरे सी;

तुम्हारी स्मृतियाँ 

उस हिमालय की 

सबसे बर्फीली और 

कठोर चट्टान सी;

तुम्हारी स्मृतियाँ 

मेरे देह पर गोदी 

गयी गोदान सी; 

तुम्हारी स्मृतियाँ 

उस बून्द की सी

जो सिंचित हो जाए 

तो तुम्हारा हूबहू 

अक्स पा लूँ मैं; 

तुम्हारी स्मृतियाँ 

उस भभकती आग सी

जिसने बर्षों साँझ ढले 

मानव सभ्यता की 

भूख मिटाई है !


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