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अजय गुप्ता

Action

4.9  

अजय गुप्ता

Action

स्मार्ट सिटी

स्मार्ट सिटी

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हे वास्तुविद, हे कलाश्रेष्ठ!

जब तुम आधुनिक शहर बनाओगे

मुझे विश्वास है, ये नये शहर

आलीशान और अदभुत होंगे।


सड़के चौड़ी होंगी, जगमगाती राते होंगी

गगनचुंबी इमारतें होंगी, वाहनों की कतारें होंगी

तुम्हारा शहर बड़ा गतिमान होगा

दृश्य दृशयातंर नयनाभिराम होगा ।


किन्तु तुम, शहर कुछ ऐसा भी बनाना

सड़कों के साथ पगडंडियां भी बनाना

जो गुजरती हों झुरमुटो के बीच से

नदी नालों वाटिकाओं के समीप से

कहीं मृग विचरते मिल जाएंगे

कहीं नृत्य करते मयूर दिख जाएंगे।


पद यात्रियों के मार्ग आसान बनाना

उपवन के मध्य से इसको लेे जाना

जहां तन-मन महक उठे 

चम्पा, जूही, बेला के फूलों से।


आधुनिक शहर में कुछ गांव भी बसाना

जो रखे तुम्हारे अतीत की धरोहर सहेज के

जहां यदि कोई जाए तो उसे पता चल जाए

"हम कैसे थे और क्या हो गए।"


इन गावों में 

किसान और कुम्हार को रखना

सारंगी, वीणा, सितार को रखना

कबड्डी, दंगल व दौड़ के मैदान रखना

पूर्वजों के कुछ मकान भी रखना।


हे वास्तुविद, हे कलाश्रेष्ठ!

 घरों का विन्यास ऐसा रखना,

उदित होता सूर्य और चांद नजर आए

भवन के सौंदर्य से पहले,

प्रकृति की छटा नजर आये

और अगर मृत्यु हो किसी की,

तो पड़ोसी को पता चल जाए।


आधुनिक शहर में,

खुली जगह ऐसी छोड़ना

जहां शांत नीरवता हो

रात्रि में प्रकाश मद्धिम हो 

बस पृथ्वी और अम्बर हो

जहां तारे व आकाश गंगा दिख जाए।


कुछ पथ ऐसे भी बनाना 

जिसके दोनों तरफ फलों के वृक्ष लगाना।

आम, इमली, जंगल जलेबी,

 अमरूद शहतूत सब लगाना

कोई भी बच्चा तोड़ के खा सके

इस पर कोई रोक न लगाना।


बुजुर्गो के लिए भी ये शहर

सुगम और प्रासंगिक बनाना

कोलाहल से दूर रमणीय

नदी तट पर देवालय बनाना।


हां, शहर कुछ ऐसा बनाना

आपदा आने से पहले सूचना मिल जाए

हवा में विष घुलने से पहले रोक लग जाए

मजदूरों को पलायन का समय मिल जाए।


विदेशो का अनुकरण करने से पहले

अपने इतिहास को दोहराना

शायद कुछ ऐसा मिले

शहर तुम्हारा विनीत विनम्र हो जाए।


हे वास्तुविद, हे कलाश्रेष्ठ !

तुम नया शहर संवेदनशील बनाना।


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