हुनर
हुनर
हुनर शब्द अपने आप में बेमिसाल है।
होता सभी के अंदर लिपटा
ये मखमली तूफानी शाल है।
कोई इसे बाहर निकाल
दिखा देता कमाल है।
तो कोई रूढ़िवादी जंजीरों
से जकड़ा बहाता आंसू
रख के हाथ में रुमाल है।
अपने हुनर को पहचान
जो आगे बढ़ जाए ,
दुनिया ठोकती
फिर उसे सलाम है।
मेरे लिखने का
बस यही सार है,
खुद पे अगर विश्वास है,
बाहर निकाल
अपने जुनून को,
रंग दो अपना नाम
इसी जीवन में,
क्योंकि हर दिन होती
एक नई सुबह और शाम है।