समाज
समाज
क्या कहूँ और किसे कहूँं
कुछ समझ न आ रहा
आरक्षण पर खूब बोलने वाले
चुप क्यूं है आज, ये तो बता।।
कब तक जात-धर्म के नाम पर
कितने होंगे बलिदान भला
कभी घोड़ी से उतारे जाते
कहीं, मूंछ रखने पर पाबंद बड़ा।।
कभी निकाला मंदिर से तो
कहीं, पानी छूने की मौत सजा
छुआछूत की प्रथा बंधु
खत्म होगी कब, ये तो बता।।
अश्रु की धारा बहने लगती
हाथरस, तमिल का जब हाल सुना
दया, करुणा, क्षमा कहाँ गई सब
समाज जाने किस ओर बढ़ा।।
सभी धर्म संग रहना सिखाते
वर्णासुर क्यूं मुंह बाए खड़ा
कैसा होगा उनका भविष्य
माहौल जिनको ऐसा मिला।।

