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Rashmi Sthapak

Classics

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Rashmi Sthapak

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सखी

सखी

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बैठ ज़रा तू पास सखी

बातें कर लूँ आज सखी

कब से मिली नहीं तू मुझसे 

कैसे कह दूँ मैं यह तुझसे

रिश्तों के इस आँगन में

कभी धूप कभी सावन में


पास भी मेरे कहा था सुन ले

अपना हीअवकाश सखी

बैठ ज़रा तू पास सखी

बातें कर लूँ आज सखी


कौन था अपना कौन पराया

अब तक मेरी समझ ना आया

अंतहीन एक डोर बँधी थी

थाम के उसको खूब निभाया

मिला नहीं फिर भी हम साया


झूठी मन की आस सखी

बैठ ज़रा तू पास सखी

बातें कर लूं आज सखी


कुछ सपने थे आसमान के

कुछ अपने थे ब़ागवान के

सपनों की तो बात अलग थी

अपनों की भी घातअलग थी 


एक राम थे वन को गए जो

अपनों के संग मैंने तो

काटा है वनवास सखी

बैठ ज़रा तू पास सखी

बातें कर लूँ आज सखी


कभी धूप है कभी छाँव है

खुशियों के भी कहीं गांव हैं

क्या मैं तुझको कहूँ री आली

तेरी-मेरी एक नाव है


कभी-कभी मन भर आता है

तेरा मुझसे क्या नाता है 

विचलित मन में पर तू मुझको

आती बहुत है याद सखी

बैठ ज़रा तू पास सखी

बातें कर लूँ आज सखी।


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