सिसकी
सिसकी
अल्फ़ाज़ों का शोर सुना है सबने
फिर लफ्जों की सिसकियाँ सुनेगा कौन
बाज तो उड़ गया लेकर शिकार आसमान में
फिर आसमान की हिचकियाँ सुनेगा कौन
जहर फैल गया नसों में मिलावटी चीजों से
फिर दवाइयों की दुहाइयां सुनेगा कौन
गुनहगार समझकर पूरी कौम को डाल दिया हाशिये पर
फिर बेकसूर की अर्जियाँ सुनेगा कौन
जब पिंजड़े से मुहब्बत पुख्ता करोगे
फिर रिहाई की मजबूरियाँ सुनेगा कौन
बिना पढ़े सब अंगूठा लगाते गये
अनपढ़ों की अदालतों में दर्जियाँ सुनेगा कौन
बहार-ए-जिंदगी की सब्ज बाग तो उजड़ गई
अब जंग-ए-जिंदगी की दुश्वारियां सुनेगा कौन
जनता तो बन गई खामोश चिता 'नालन्दा'
अब बेअसर दुआओं का अर्शिया सुनेगा कौन
