STORYMIRROR

Nalanda Satish

Abstract Tragedy

4  

Nalanda Satish

Abstract Tragedy

सिसकी

सिसकी

1 min
174

अल्फ़ाज़ों का शोर सुना है सबने

फिर लफ्जों की सिसकियाँ सुनेगा कौन


बाज तो उड़ गया लेकर शिकार आसमान में

फिर आसमान की हिचकियाँ सुनेगा कौन


जहर फैल गया नसों में मिलावटी चीजों से

फिर दवाइयों की दुहाइयां सुनेगा कौन


गुनहगार समझकर पूरी कौम को डाल दिया हाशिये पर

फिर बेकसूर की अर्जियाँ सुनेगा कौन


जब पिंजड़े से मुहब्बत पुख्ता करोगे

फिर रिहाई की मजबूरियाँ सुनेगा कौन


बिना पढ़े सब अंगूठा लगाते गये

अनपढ़ों की अदालतों में दर्जियाँ सुनेगा कौन


बहार-ए-जिंदगी की सब्ज बाग तो उजड़ गई

अब जंग-ए-जिंदगी की दुश्वारियां सुनेगा कौन


जनता तो बन गई खामोश चिता 'नालन्दा'

अब बेअसर दुआओं का अर्शिया सुनेगा कौन



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract