सिसक रही हूँ
सिसक रही हूँ
आज, सिसक रही हूं, मैं
यहाँ
इस निर्जन सूने पर्वत
शिखर पर
क्यों,
क्योंकि, एक नारी हूं, मैं
कब तक,
बचाती रहूंगी, मैं
अपनी -अस्मत को
समाज के इन दरिंदों, से
जो, आज के दौर में
हर समय और हर जगह
मौजूद है यहाँ,
इस निर्जन सूने पर्वत
शिखर पर
कुछ तो सुकून मिलेगा
कुछ पल को,
क्योंकि,
आज नहीं तो, कल को
वो, यहाँ भी आ जायेंगे
लूटने को, अस्मत,
क्योंकि, एक नारी हूं, मैं ...