सीता से प्रियंका तक
सीता से प्रियंका तक
अंधकारमय थी वह गली
वह वाहन लेकर अकेली ही थी चली,
सोचा था भारत में ही है वह पली
जहाँ संस्कार, सभ्यता की रीत है चली।
अचानक वाहन के चक्के से वायु निकली,
कुछ दूर तक गाड़ी उसने स्वयं ही ढकेली,
अंधकार से तब किसी की आकृति निकली,
देवदूत जानकर उसने मदद माँग ली।
पर वह तो नर पिशाचों की टोली निकली,
चार नराधमों ने उसे जकड़ लिया,
मुँह में कपड़ा ठूंस मोबाइल भी उससे छीन लिया।
बार-बार नराधमों ने उस
असहाय पर आघात किया,
कुकर्म कर दरिंदों ने
इंसानियत को भी शर्मसार किया।
जब घिनौने हाथों ने उसे छुआ होगा ,
कैसे लड़ी होगी वह इन नर पिशाचों से?
कितनी तड़प, कितनी पीड़ा,
उसने सही होगी,
उनके आसुरी प्रहारों से?
चार-चार असुरों का
रक्त पिपासु बनकर
टूट पड़ना ,
जाने कितनी बार उसने
अपनी माँ को पुकारा होगा?
बाबा की उस लाडली ने
कैसे दर्द में पुकारा होगा?
हे ! ईश्वर उस समय
तू कैसे चुप रहा होगा ?
उसकी चीत्कार से क्या
तेरा दिल नहीं दहला होगा?
इतनी सुंदर सृष्टि में
ऐसे नराधम कैसे बनाए तूने?
क्यों कोई माँ देगी बेटी को जीने?
इन नर पिशाचों का निवाला
बनने से तो अच्छा है
कोख में ही दे उसे मर जाने।
गा ले ऐ भारत तरक्की के तू कई तराने,
रावण अभी भी ज़िंदा है,
बीत गए कई जमाने।
कभी सीता तो कभी प्रियंका हरण का
यह खेल कब तक चलेगा न जाने?
हर मुहल्ले, गली में खड़े हैं दानव सीना ताने,
हे राम! कहाँ-कहाँ पहुँचोगे तुम सीता को बचाने
उस समय केवल एक रावण था तुम्हारे सामने
आज अनगिनत रावण बैठे हैं सीता को ग्रसने।