एविडेंस
एविडेंस
इस साल हमारी पाठशाला
का मूलमंत्र था ’गो ग्रीन’,
बड़ी गंभीरता से हम सब कर रहे थे
इसका पालन हर दिन,
प्रिन्टर बेचारा पड़ा-पड़ा सुस्ता रहा था,
दिन में एकाध प्रिन्ट आउट ही तो
निकाल रहा था।
फिर अचानक सीबीएसई ने
जारी किया फरमान,
क्या पढ़ाते हैं आप, उसके दो सारे प्रमाण,
अब गो ग्रीन की धज्जियाँ उड़ती नज़र आईं,
क्योंकि हर तरफ कागज़ ही कागज़
दे रहे थे दिखाई।
हर तरफ थी केवल कागज़ों की भरमार,
लग रहा था हर पेड़ काटा जाएगा इस बार,
देखकर सोशल साईंस का गठ्ठा,
लगा अरे! यह पेड़ तो था बहुत ही हट्टा- कट्टा।
जब हिन्दी की बारी आई,
तो लग रहा था जैसे किसी
कोमल पौधे की जान गई,
अब बात मेरी समझ में आई,
क्यों भ्रष्ट आचरण हर तरफ देता दिखाई।
यहाँ कक्षा में क्या पढ़ाया
नहीं है उसका कोई मोल,
जो कागज़ पर लिखी,
वहीं बात है केवल अनमोल।
दूर बैठे-बैठे किसी के आचरण के
संबंध में अंदाजा लगाना
हमारी सरकार की रीति है,
कई कागज़ों को बर्बाद कर
बच्चों को फिर से पढ़ना "पेड़ बचाओ"
यही हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति है।
यह कविता जब सीबीएसई ने शिक्षा में सुधार लााने के लिए
सीसीई लागू किया था उसके कारण अध्यापकों को जो
परेशानी हुई तथा जिस प्रकार कागज़ की बर्बादी हुई उसी पर व्यंग्य है