वसुंधरा
वसुंधरा
माँ भारती आज,
अविरल अश्रु बहाती प्रश्न चिन्ह लिए मौन खड़ी है,
अपने ही बर्बादी का दृश्य देख
व्यथित हो पूछ रही है,
क्या मेरा अपराध रहा है?
जिस पर वात्सल्य की वर्षा की,
ममत्व से जिसको सींचा है,
आज वही संतान हृदय पर मेरे
कुठाराघात कर रही है,
जालिम आतताई बन
धर्म और जेहाद के नाम पर
मुझको लज्जित बार-बार कर रही है,
अपनी ही धरनी पर प्रहार कर
अपने ही परिजनों को मार
असुरी अट्टहास कर रही है।
विपिदा तो सदैव से आती रही है,
हमारी अभेद्य अखंडता को डराती रही है,
तब-तब माँ भारती की संतति
एकता का ब्रह्मास्त्र चलाती रही है,
फिर आज ऐसा क्या हो गया?
इंसानियत से बढ़कर जाति, धर्म
और मजहब हो गया,
कोरोना रूपी संकट तो
आज नहीं तो कल जाएगा
पर क्या इन संक्रमित विचारों को
अपने साथ ले जाएगा?