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Neeraj pal

Abstract

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Neeraj pal

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सीखा है

सीखा है

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कुछ पाने की लालसा में मैंने खोना भी सीखा है

हंसा सको इस जग को भी, तो रोना भी सीखा है


मुझे पता नहीं कौन अमर है, और कौन मिटने को तैयार है

जीवन रूपी सिनेमा पर, आंसू बहाना सीखा है


प्रेम मिला पर विष भरा, लगाव यहां का मरुभूमि जैसा

इस सकून भरी दुनिया में भी, पीड़ा में जीना सीखा है


जिसने भी यह दुनिया बनाई, उसके खेल बड़े ही निराले हैं

अपने दिल को समझा कर देखा, उसके दिल को मनाना सीखा है


लाचारी और बेबसी में, ठोकर का लगना निश्चित है

अपने अरमानों को फूंक कर, राख ही होना सीखा है


तेरी दुनिया के रंगमंच में, तू ही इसका निर्माता है

हुआ लाचार है" नीरज", तुझ में समर्पित होना ही सीखा है।


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