शुरू शुरू में
शुरू शुरू में
नीली निगाहों का नशा होता है
शुरू शुरू में थोड़ा चढ़ा होता है
जुल्फें रेशमी, मुखड़ा चाँद का टुकड़ा लगता है
वक़्त कैसे कटता ये कहाँ पता होता है
मर मिटने का जज्बा सातवें आसमान पर होता है
इश्के ए दास्ताँ का हर पन्ना बयां होता है
मौसम थोड़ा बदला बदला होता है
जनाब कहाँ कुछ हमारे हाथ होता है
वक़्त गुजरने के बाद, मोहब्बत मुक्कमल हुई तो ठीक
वरना घाव और पीर का सैलाब होता है।