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Sheetal Raghav

Abstract

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Sheetal Raghav

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शुभ प्रभात

शुभ प्रभात

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यह प्रेमिका, 

अब वापस अपने घर, 

जाएगी 


चीन ही है,

इसकी मातृभूमि,

वही जननी,

इसकी कहलाएगी, 


बहुत दिन,

बीते ससुराल में, 

अब यह गोरी, 

अपने मायके, 

सदा के लिये,

वापस जाएगी, 


जा कर यह, 

गोरी प्यारी, 

अपने भाई बहनों को, 

गले लगाएगी,

 

जान छूटेगी,

इसके कहर से, 

तब दुनिया,

चैन पाएगी,


धरा होगी प्रसन्न,

इस प्रकोप से, 

ना अब कोई अर्थी, 

मेरी शरण में आएगी, 


फिर से अरमानो का,

सूरज निकलेगा,

धरा तब ही चैन पायेगी,


जब कोरोना महामारी, 

मेरी भूमि से,

हमेशा के लिए,

विदा ले जाएगी,


हर दिल फिर,

उम्मीद करेगा, 

जब यह कोरोना, 

हमारी भूमि से हटेगा,


हर दिल फिर, 

उम्मीद करेगा,

कब जीवन में फिर ,

सुख का प्रकाश भरेगा?


ढूंढ लिया हल, 

हमने इसका ,

जन-जन वैक्सीन पाएगा,

हा हा कार का प्रचंड तांडव, 

अब ना शोर मचा पाएगा,


होगा जगत में, 

सुखद उजियारा,

भोर का सूरज, 

फिर सुनहरी किरणों को, 

धरती तक ले आएगा,


उपवन में होगी, 

जन-जन की उपस्थिति, 

फिर योग, नित,

अपने ठहाके लगाएगा, 


बिना रोक-टोक, 

हर उपवन,

में योग,

जनहित में,

जोरदार ठहाके ,

हरदिन भोर भये,

लगाएगा,


यह दिन भी जल्दी,

आ जायेगा,

तभी तो, 

शुभ प्रभात 

कहलाएगा।।


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