श्रृंगार रस ( प्रकृति )
श्रृंगार रस ( प्रकृति )
नई नवेली दुल्हन सी सजी धरती रूप अनोखा छाया है,
सोलह श्रृंगार में देख धारा की शोभा मन सबका हर्षाया है,
सुध-बुध खो गई देवों की भी देख अद्भुत रूप धरा का,
अचंभित होकर देख रहे क्या स्वर्ग धरती पर उतर आया है,
स्वर्ण रश्मि के आभूषणों से सुसज्जित एक मधुर मुस्कान लिए,
हरियाली चुनर ओढ़े प्रकृति धरती पर सौंदर्य उपहार लाया है,
सतरंगी हुईं पुष्प लताएं, नदियों और झीलों में झलक रहा यौवन,
प्रीत की नदियां बहे, मन रूपी उपवन में पुष्प प्रेम का खिल आया है
प्रेम-राग, रंग, अबीर छाया चेहरों पर, फाग गीत की बहार लेकर,
हर्षोउल्लास के साथ आया है वसंत, देखो कैसा रंग बसंती छाया है।
