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Ratna Kaul Bhardwaj

Tragedy

4.7  

Ratna Kaul Bhardwaj

Tragedy

शर्मसार है 72वाँ गणतन्त्र दिवस

शर्मसार है 72वाँ गणतन्त्र दिवस

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कैसे बंदा आज यहाँ

वहशी दरिंदा हो गया

करता रहा जो नेतृत्व

वह खुद परिंदा हो गया


अन्नदाता इस देश का

है असल में भोला भाला

तनिक विचारें तो ज़रा

इरादा क्यों उसका गंदा हो गया


मेहनतकश किसान को

शातिर वर्गला कर ले गया

मक्कारी की राह चलना

अब उसका धंधा हो गया


कैसे देश का हाल उस पल

चुटकियों में उसने बदल दिया

गद्दारों ने जाल बिछाया

भोला किसान अंधा हो गया


हुआ तांडव लाल किले पर

अवाम सिसकती रह गई

देश को डसने वालों का 

भारी चन्दा हो गया


सब्र, सुविचार सदाचार

न जाने उस पल कहाँ गए

झूठ फरेब मार धाड़

इसी में उलझ बंदा गया


सदियों से जो डाल बना था

बाहरी हुक्मरानों से

आज शर्म से झुक गया

देखो उसका कंधा है


आवाज़ दे रहा लाल किला

हूँ आज़ादी का मैं प्रतीक

मेरी रूह आज रिस रही है

गले में फंसा मेरे फंदा है


तिरंगा भी अधिक घायल है

षड्यंत्रों के चक्रव्यूह से

कैसे विश्वासघात सहे

किया आज उसको बेरंगा है


72वाँ गणतंत्र दिवस

हुआ है आज शर्मसार

प्रतिष्ठा हुई है तार तार

तंत्र हुआ आज नंगा है


अब बारी है जन जन की

हर आघात का जवाब पाने की

तिरंगा हो या हो लाल किला

दुश्मन के लहू से उसे रंगना है


इस पवित्र धरा से पापियों को

खदेड़ के बाहर करना हैं

देश की अस्मत सर्वोत्तम है

मिटने को तैयार यहां हर बंदा है....


जय भारत, मेरी आन बान शान




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