शर्मसार है 72वाँ गणतन्त्र दिवस
शर्मसार है 72वाँ गणतन्त्र दिवस
कैसे बंदा आज यहाँ
वहशी दरिंदा हो गया
करता रहा जो नेतृत्व
वह खुद परिंदा हो गया
अन्नदाता इस देश का
है असल में भोला भाला
तनिक विचारें तो ज़रा
इरादा क्यों उसका गंदा हो गया
मेहनतकश किसान को
शातिर वर्गला कर ले गया
मक्कारी की राह चलना
अब उसका धंधा हो गया
कैसे देश का हाल उस पल
चुटकियों में उसने बदल दिया
गद्दारों ने जाल बिछाया
भोला किसान अंधा हो गया
हुआ तांडव लाल किले पर
अवाम सिसकती रह गई
देश को डसने वालों का
भारी चन्दा हो गया
सब्र, सुविचार सदाचार
न जाने उस पल कहाँ गए
झूठ फरेब मार धाड़
इसी में उलझ बंदा गया
सदियों से जो डाल बना था
बाहरी हुक्मरानों से
आज शर्म से झुक गया
देखो उसका कंधा है
आवाज़ दे रहा लाल किला
हूँ आज़ादी का मैं प्रतीक
मेरी रूह आज रिस रही है
गले में फंसा मेरे फंदा है
तिरंगा भी अधिक घायल है
षड्यंत्रों के चक्रव्यूह से
कैसे विश्वासघात सहे
किया आज उसको बेरंगा है
72वाँ गणतंत्र दिवस
हुआ है आज शर्मसार
प्रतिष्ठा हुई है तार तार
तंत्र हुआ आज नंगा है
अब बारी है जन जन की
हर आघात का जवाब पाने की
तिरंगा हो या हो लाल किला
दुश्मन के लहू से उसे रंगना है
इस पवित्र धरा से पापियों को
खदेड़ के बाहर करना हैं
देश की अस्मत सर्वोत्तम है
मिटने को तैयार यहां हर बंदा है....
जय भारत, मेरी आन बान शान