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Neha Yadav

Abstract

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Neha Yadav

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श्रमिक

श्रमिक

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श्रम से समस्त आर्थिक उन्नति टिकी है

सबसे आदर्श, उत्कृष्ट क्रियाकलापों की धुरी है।


मैं श्रमिक ! अपने स्वाभिमान को बचाकर

श्रम करके अपने बलपर

दो वक्त की रोटी पाना चाह रहा हूं।


अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर 

खुद पर निर्भर और

उचाईयों तक पहुंचना चाह रहा हूं।


गाड़ी बंगला का शौक़ नहीं रखता 

अपनी झोपड़ी में रह कर 

परिवार के साथ जीना चाह रहा हूं।


पत्थर तोड़ थक कर श्रम से चूर हूं

फिर भी काम करना चाह रहा हूं

लौट कर घर परिवार में अपने

प्यार लूटाना चाह रहा हूं।


देश की क्रमिक उन्नति 

राष्ट, गांव की प्रगति चाह रहा हूं।


मैं श्रमिक ! अपने स्वाभिमान को बचाकर

श्रम करके अपने बल पर

दो वक्त की रोटी पाना चाह रहा हूं।।


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