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ARVIND KUMAR SINGH

Romance

3  

ARVIND KUMAR SINGH

Romance

शर्म काहे को करना

शर्म काहे को करना

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अंग अंग मेरा ले अंगड़ाई

हर रंग बसा दे आहों में

तोड़ के रख दे बदन मेरा

जकड़ के अपनी बाहों में

होली पर सब माफ तुझे   

फिर शर्म काहे को करना।


आजा आकर कर ले होली

तू मुझसे दूर दूर यूं डर न।


मुझको गिरा के तू लुढका

और रगड़ के रंग लगा ले

पागल कर मुझको इतना

कि अंगो से अंग लगा ले

ऐसा मौका मिले न मिले

फिर शर्म काहे को करना


आजा आकर कर ले होली

तू मुझसे दूर दूर यूं डर न।


उठ न पाऊँ फिर गिर जाऊं

मेरे होश-ओ-हवाश भुला दे

अधूरी न रह जाऐ ख्‍वाहिश

सब जागे अरमान सुला दे

आज के दिन को तरसे हैं      

फिर शर्म काहे को करना


आजा आकर कर ले होली

तू मुझसे दूर दूर यूं डर न।


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