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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -८० ; पृथु की वंश परम्परा और प्रचेताओं को भगवान रूद्र का उपदेश

श्रीमद्भागवत -८० ; पृथु की वंश परम्परा और प्रचेताओं को भगवान रूद्र का उपदेश

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मैत्रेय जी कहें पृथु के बाद फिर 

विजितावश राजा हो गए 

अपने चारों छोटे भाईयों को

चार दिशाओं के अधिकार दे दिए। 


इंद्र से शक्ति प्राप्त की थी 

उन्होंने अन्तर्धान होने की 

इसलिए अन्तर्धान कहें उनको 

प्रजा उनसे बहुत प्रसन्न थी। 


पत्नी का नाम शिखण्डिनी उनकी 

तीन सुपुत्र पैदा हुए थे 

पावक, पवमान और शुचि 

ये उन तीनों के नाम थे। 


पूर्वकाल में वसिष्ट के शाप से 

इन नाम की अग्नियों ने ही 

पुत्रों के रूप में जन्म लिया था 

आगे चल कर फिर अग्नि हो गयीं। 


अन्तर्धान की नभस्वति नाम की 

पत्नी के पुत्र हविर्धान हुआ 

अन्तर्धान ने हरि की आराधना कर 

दिव्य लोक प्राप्त कर लिया। 


हविर्धान की पत्नी हविर्धानी से 

छः पुत्र उत्पन्न हुए थे 

बर्हिषद, गय, शुकल, कृष्ण 

सत्य और जितव्रत उनके नाम थे। 


बर्हिषद यज्ञादि कर्मों में 

योगसाधना में कुशल थे 

इन गुणों के कारण ही 

वो थे तब प्रजापति बने। 


एक स्थान से दूसरे स्थान में 

इतने यज्ञ किये उन्होंने 

कि सारी पृथ्वी पट गयी थी 

अग्रभाग के कुशों से। 


इसी कारण से आगे चलकर 

प्राचीनबर्हि नाम से जाने गए 

समुन्द्र कन्या शतद्रुति से विवाह किया 

ब्रह्मा जी के कहने से। 


सर्वांगसुन्दरी शतद्रुति जब 

विवाह मंडप में घूम रही वो 

अग्निदेव मोहित हुए ऐसे 

जैसे शुकी को चाहते थे वो। 


नवविवाहिता शतद्रुति ने 

अपने नुपुरों की झंकार से 

देवता, असुर, गन्धर्व और सिद्ध 

सभी को वश में कर लिया था अपने। 


शतद्रुति के गर्भ से फिर 

प्रचेता नाम के दस पुत्र हुए 

ये सब थे बड़े धर्मज्ञ 

और एक सा ही आचरण करें \


पिता ने उन प्रचेताओं को 

संतान उत्पत्ति का आदेश दिया 

तब उन सब ने तपस्या के लिए 

समुन्द्र में था प्रवेश किया। 


दस हजार वर्षों तक वहां 

आराधना की थी श्री हरि की 

और मन में धारणा थी उनके 

महादेव जी के उपदेश की। 


तपस्या करने के लिए 

घर से जब वो जा रहे थे 

दर्शन देकर उपदेश दिया था 

मार्ग में महादेव ने उन्हें। 


विदुर जी पूछें, हे ब्राह्मण कैसे 

महादेव मिले प्रचेताओं को 

और उनको क्या उपदेश दिया 

विस्तार से बताईये ये मुझको। 


मैत्रेय जी कहें, हे विदुर जी 

साधुस्वभाव प्रचेताओं ने 

पिता की आज्ञा शिरोधार्य की 

चल दिए वो तपस्या करने। 


चलते चलते उन्होंने देखा 

समुन्द्र समान एक सरोवर सुंदर 

उनको बहुत आश्चर्य हुआ था 

उस सरोवर की शोभा देखकर। 


इतने में उन्होंने देखा 

उस सुंदर सरोवर में से 

शिवशंकर बाहर आ रहे 

अनुचरों को अपने साथ ले। 


बड़ा कौतहूल हुआ तब उनको 

दर्शन करके सहसा शंकर के 

शंकर जी को प्रणाम किया जब 

प्रसन्न हो कहा उन्हें शिवशंकर ने। 


महादेव तब बोले उनको 

तुम सब हो प्राचीनबर्हि के पुत्र

तुमपर कल्याण करने को ही 

मैंने तुमको दिया है दर्शन। 


भागवत्भक्त होने के नाते 

भगवान के समान ही प्यारे तुम मुझे 

बहुत पवित्र और मंगलरूप 

एक स्तोत्र सुनाता हूँ तुम्हे। 


तुम लोग फिर शुद्ध भाव से 

जप करना इस स्तोत्र का 

इसीसे तपस्या करना भगवान की 

तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा। 


कहना प्रभु हम लोगों को है 

आपके दर्शनों की अभिलाषा 

भक्तजन जिसका दर्शन करते हैं 

निजजनों को जो है बहुत प्रिय। 


आपके इस अनूप रूप की

झांकी आप दिखलाईये हमको 

यही रूप अपने गुणों से 

तृप्त करे समस्त इन्द्रीयों को। 


हम अज्ञानवृत प्राणीओं को अपनी 

प्राप्ति का मार्ग बताएं 

आप ही हमारे गुरु हैं 

आप की शरण में हम हैं आये। 


प्रभो अगर अभिलाषा है 

चित्तशुद्धि की किसी पुरुष को 

निरंतर ध्यान में रखना चाहिए 

उसे आपके इस रूप को। 


इसी रूप की भक्ति से ही 

अभय हो जाते पुरुष वो 

जो सवधर्म का पालन करके 

मन में देखते इसी रूप को। 


स्वर्ग का शासन करने वाला 

इंद्र भी आपको पाना चाहता 

आत्मज्ञानिओं की गति आप हैं 

ब्रह्माण्ड आप ही में समाता। 


सभी देहधारी जीवों के लिए 

अत्यंत दुर्लभ है पाना आपको 

केवल भक्तिमान पुरुष को 

पाना है आसान आपको। 


प्रभु आपके चरणकमल ही 

सम्पूर्ण पापों को हर लेते 

बस इतनी कृपा करो हम पर मिले 

भक्तजनों का संग आपके। 


अपनी माया से आप ही 

अनेकों रूप धारण हैं करते 

इसी के द्वारा जगत की रचना 

पालन और संहार हैं करते। 


भगवान रूद्र कहें प्रचेताओं से 

आचरण करके तुम सवधर्म का 

चित लगाकर श्री हरी में 

जाप करें इस स्तोत्र का। 


योगदेश नाम ये स्तोत्र 

करे तुम सबका मंगल ये 

मन में धारण करके इसको 

अभ्यास करो तुम एकाग्रता से। 


पूर्वकाल में ब्रह्मा जी ने 

ये सुनाया हम प्रजापतिओं को 

अज्ञान निवृत हो, प्रजा उत्पन्न की 

इसी के द्वारा ज्ञान हुआ हमको। 


इस लोक के कल्याणसाधनों में 

मोक्ष ज्ञान सबसे श्रेष्ठ है 

इस स्तोत्र का जाप करने से 

भगवान जल्द प्रसन्न होते हैं। 


इस स्तोत्र का गान कर उनसे 

जो चाहिए प्राप्त कर लेना 

स्तोत्र के जाप से तपस्या करो 

तुम्हें अभीष्ट फल मिलेगा।


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