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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -४४ ;कर्दम मुनि की तपस्या और भगवान का वरदान

श्रीमद्भागवत -४४ ;कर्दम मुनि की तपस्या और भगवान का वरदान

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विदुर कहें कि हे महामुने 

स्वयम्भुव मनु का वंश बताएं 

मैथुन धर्म से प्रजा वृद्धि की 

इन सब की मुझे कथा सुनाएं। 


स्वयम्भुव मनु के दो पुत्र थे 

प्रियव्रत और उत्तानपाद थे 

सातों द्वीपों वाली पृथ्वी का 

धर्मपूर्वक पालन करते थे। 


मनु की पुत्री जो देवहूति थी 

कर्दम मुनि से व्यहि गयीं थीं 

कर्दम जी ने देवहूति से 

उत्पन्न कितनी संतानें की थीं। 


और रूचि और दक्ष प्रजापति 

मनु कन्याओं का पाणिग्रहण किया 

उनसे जो संतानें उत्पन्न हुई 

किस प्रकार और थीं वो क्या क्या। 


ये सारे प्रसंग प्रभु अब 

मधुर वाणी में मुझे सुनाएं 

ये सुन मैत्रेय जी प्रसन्न हुए 

विदुर जी को वो ये बताएं। 


ब्रह्मा जी आज्ञा दें कर्दम को 

संतान की अब तुम करो उत्पत्ति 

दस हजार वर्षों तक उन्होंने 

सरस्वती तट पर तपस्या की। 


श्री हरि की आराधना करें वो 

तब सतयुग के प्रारम्भ में 

श्री हरी प्रसन्न हुए थे उनसे 

मूर्तिमान हो उनको दर्शन दिए। 


भगवान का ये स्वरुप जो था 

सूर्य के सामान तेज था उसमें 

शंख, चक्रादि विराजमान थे 

हर्षित कर्दम दर्शन कर उनके। 


कर्दम जी ने प्रणाम किया उन्हें 

हाथ जोड़ स्तुति करने लगे 

बोले, आज दर्शन देकर 

नेत्रों का फल दे दिया मुझे। 


समस्त मनोरथों को पूरा करते 

आप मानो एक कलापवृक्ष हैं 

मेरी भी आपसे एक विनती है 

ह्रदय मेरा काम कलुषित है। 


अपने अनुरूप स्वाभाव वाली एक 

शीलवती कन्या को मांगने 

विवाह करने के लिए मैं उससे 

चरण कमलों में आया हूँ आपके। 


चरण कमल वन्दनीय आपके 

नमस्कार करूँ बार बार इन्हे 

उनकी स्तुति से प्रभु प्रसन्न हुए 

अमृतवाणी में ये कहने लगे। 


जिसके लिए की मेरी आराधना 

उस भाव को मैंने जानकर 

पहले ही व्यवस्था कर दी 

परम भक्त मेरा मानकर। 


स्वयम्भुव मनु जो शासन करते 

सात समुन्द्र वाली पृथ्वी पर 

महारानी शतरूपा के संग 

आएंगे जल्दी यहाँ पर। 


उन दोनों की एक कन्या है 

शीलवान,सर्वगुण संपन्न वो 

तुमको अर्पण करेंगे उसको 

इस समय विवाह योग्य वो। 


वो भार्या बन सेवा करेगी 

तुम्हारी नो कन्याएं होंगीं 

तुम्हारी पत्नी देवहूति से 

पुत्र रूप में जन्म लूँ मैं भी। 


ये कह बिन्दुसार तीर्थ से 

भगवान अपने लोक चले गए 

उनके जाने के बाद कर्दम जी 

बिन्दुसार में ही ठहरे रहे। 


मनु शतरूपा की प्रतीक्षा करें 

निश्चित दिन दोनों वहां पर आये 

कर्दम जी के आश्रम पहुंचे 

अपनी कन्या को साथ वो लाये। 


सरस्वती के जल से भरा हुआ 

बिन्दुसरोवर वो स्थान ये 

कर्दम तप देख जहाँ करुणा से 

प्रभु नेत्रों से आंसू गिरे थे। 


उस समय वो स्थान वहां पर 

परम मनोहर लग रहा था 

कर्दम मुनि दिखें बहुत तेजस्वी 

मनु पहुंचे कर्दम को देखा। 


मुनि को प्रणाम किया उन्होंने 

मुनि ने भी उन्हें आशीर्वाद दिया 

फिर उनको आसन पर बिठाया 

अतिथि मान उनका सत्कार किया। 


मधुर वाणी में मुनि ने कहा 

यहाँ आने का प्रयोजन क्या है 

पालनशक्ति रूप विष्णु के आप हैं 

बताएं मेरे लिए क्या आज्ञा है। 


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