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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -१८ ;राजा परीक्षित को श्रृंगी ऋषि का शाप

श्रीमद्भागवत -१८ ;राजा परीक्षित को श्रृंगी ऋषि का शाप

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सूत जी कहें कि कृष्ण कृपा से 

ब्रह्मास्त्र से नहीं जले वो 

तक्षक ने जब काटा परीक्षित को 

प्राणों के भय से भयभीत नहीं वो। 


क्योंकि चित लगाया भक्ति में 

कृष्ण के चरणों में था सर दिया 

सभी आसक्तियां छोड़ उन्होंने 

उपदेश शुकदेव जी का ग्रहण किया। 


स्वरुप जानकर भगवन कृष्ण का 

शरीर अपना उन्होंने त्यागा वहीँ 

जो कृष्ण का भजन करें उन्हें 

अन्तकाल में होता मोह नहीं। 


जब तक परीक्षित धरती पर रहे 

कलयुग का प्रभाव नही था 

द्वेष न करें वो कलयुग से 

बहुत बड़ा गुण उसमें दिखता। 


पुण्यकर्म तो संकल्प मात्र से 

कलयुग में फलीभूत हो जाते 

पापकर्म का फल तभी मिले 

शरीर से जब तुम करते हो उसे। 


ऋषि कहें फिर सूत जी से कि 

भगवन के चरित्रों का वर्णन करें 

विस्तार से परीक्षित की कथा सुनाएं 

प्रेम से हम सब श्रवण करें। 


सूत जी कहें शक्ति अनंत है 

भगवान की, और वो भी अनंत हैं 

कृष्ण की भक्ति है जिसमें वो 

मोक्ष मिले उसे, वो संत है। 


प्रक्षालन करने को, जल समर्पित किया 

ब्रह्मा जी ने, प्रभु के चरणों में 

चरननखों से निकल कर वो जल 

प्रवाहित हुआ गंगा के रूप में। 


पवित्र करता ये जल जीवों को 

शुद्ध हो जाये मनुष्यों का मन 

अब अपनी बुद्धि अनुसार मैं 

कृष्ण लीला करता हूँ वर्णन। 


एक दिन राजा परीक्षित 

धनुष ले जब वन को गए थे 

हिरणों के पीछे भाग, वो थक गए 

बेहाल हुए वो भूख प्यास से। 


पास में ऋषि का आश्रम एक था 

देखा मुनि बैठे ध्यान में 

जल माँगा जब उनसे तो 

जवाब न मिला कोई मुनि से। 


अपमानित महसूस किया राजा ने 

ब्राह्मण के प्रति क्रोध आ गया 

उनके साथ कभी ना हुआ ऐसा 

जीवन में ये पहला अवसर था। 


धनुष की नोक से सांप मरा हुआ 

ऋषि के गले में उन्होंने डाला 

राजधानी वापिस चले गए 

सोचा ना था ये क्या कर डाला। 


शमीक मुनि का पुत्र श्रृंगी 

पास में वहांपर खेल रहा था 

सुना दुर्व्यवहार राजा ने किया 

क्रोध में फिर उसने कहा था। 


नरपति कहलाने वाले 

अन्याय करते हैं लोग सब 

इसकी उनको सजा मिलेगी 

दंड दूंगा मैं राजा को अब। 


ऋषिकुमार ने शाप दिया फिर 

अपमान किया जो मेरे पिता का 

आज से सात दिन के बाद में 

सर्प तक्षक उसको डस लेगा। 


आश्रम में आया वो बालक 

देख कर रोता पिता को 

शमीक मुनि ने आँखें खोलीं 

पूछा पुत्र, क्यों रो रहे हो। 


सारा हाल सुनाया पिता को 

वो कहें, तूने पाप किया है 

परीक्षित शाप के योग्य नहीं है 

उनको तूने क्यों शाप दिया है। 


छोटी सी गलती थी उनकी 

इतना बड़ा दंड दिया उनको 

राजा के तेज से ही तो 

प्रजा सुरक्षित माने अपने को। 


राजा अगर नष्ट हो जाये 

पापी, चोर जो भी पाप करें 

हमारा सम्बंध ना हो पापों से 

तो भी हम उसके भागीदार बनें। 


परीक्षित तो हैं धर्म परायण 

राजा वो बड़े यशशवी हैं 

भूख प्यास से व्याकुल थे वो तब 

शाप योग्य कदापि नहीं हैं। 


पुत्र के आचरण पर पश्चाताप हुआ 

अपने अपमान पर ध्यान न दें वो 

महात्मा का स्वाभाव ही ऐसा 

हर्षित या व्यथित न वो हों। 


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