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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -१४४; मानवधर्म, वर्णधर्म और स्त्रीधर्म का निरूपण

श्रीमद्भागवत -१४४; मानवधर्म, वर्णधर्म और स्त्रीधर्म का निरूपण

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युधिष्ठिर ने नारद जी से पूछा 

अब मैं श्रवण करना चाहता हूँ 

वर्ण, आश्रमों के सदाचार के साथ 

मनुष्यों के सनातन धर्म का ।


क्योंकि धर्म से ही मनुष्य को 

प्राप्ति होती ज्ञान, भगवान की 

आप स्वयं ब्रह्मा जी के पुत्र 

और आप हो खान गुणों की ।


धर्म के गुप्त से गुप्त रहस्य जो 

आप जानते जैसा उनको 

और कोई वैसा न जान सके 

ये सुन नारद कहें युधिष्ठर को ।


युधिष्ठर, ये अजन्मा भगवान ही 

मूल कारण हैं धर्मों के 

अवतीर्ण हो बद्रिकाश्रम में तप करें 

पुत्र धर्म और दक्ष पुत्री मूर्ती से ।


सनातन धर्म का वर्णन करता हूँ 

मुख से सुने हुए उन्ही के 

धयाके उन नारायण भगवन को 

नमस्कार उनको मैं करके ।


युद्धिष्ठर, शास्त्रों में कहे गए 

तीस लक्षण हैं धर्म के

सत्य, दया, तपस्या, शौच 

संयम, अहिंसा और त्याग के जैसे ।


यही तीस प्रकार के आचरण 

परम धर्म है सभी मनुष्यों का 

इसके पालन से प्रसन्न हों 

भगवान, हमारे सर्वात्मा ।


 जिनके वंश में अखंड रूप से 

संस्कार हैं होते आये 

संस्कार के योग्य स्वीकार किया है 

और जिन्हें ब्रह्मा जी ने ।


उन्हें हम द्विज कहते हैं 

और इन शुद्ध द्विजों के लिए 

यज्ञ, अध्ययन, दान, ब्रह्मचर्य आदि 

विशेष कर्मों का विधान हैं, आश्रमों के ।


अध्ययन और अध्यापन करना 

दान लेना और दान देना है 

यज्ञ करना और कराना 

ये छ कर्म ब्राह्मणों के हैं ।


क्षत्रियों को दान नहीं लेना चाहिए 

निर्वाह होता है क्षत्रियों का 

यथायोग्य कर और दण्ड लेकर 

सबसे, बस ब्राह्मणों के सिवा ।


ब्राह्मणवंश का अनुयायी रहकर 

गोरक्षा, कृषि एवं व्यापार से 

जीविका अपनी चलानी चाहिए 

वैश्य को इन सब कर्मों से ।


शूद्र का ये धर्म है 

सेवा करे वो द्विजातिओं की 

और उसका स्वामी करता 

निर्वाह जीविका का उसकी ।


शम, दम, तप. शौच, संतोष 

क्षम, सरलता, ज्ञान, दया ये 

भगवानपरायणता और सत्य 

ब्राह्मणों के ये लक्षण हैं ।


युद्ध में उत्साह, वीरता, धीरता 

तेजस्विता, त्याग, मनोजय, क्षमा ये 

ब्राह्मण के प्रति भक्ति, अनुग्रह और 

प्रजा की रक्षा, लक्षण क्षत्रिय के ।


देवता, गुरु, भगवान के प्रति भक्ति 

लगना अर्थ, धर्म और काम की रक्षा में 

आसक्तिता, उद्योगशीलता और व्यावहारिक निपुणता 

वैश्य के हैं सब लक्षण ये ।


पवित्रता, निष्कपट स्वामी की सेवा 

विनम्र रहना सामने अन्य वर्णों के 

चोरी न करना, गो, ब्राह्मणों की सेवा 

ये सब लक्षण हैं शुद्र के ।


पति सेवा, प्रसन्न रखना उसे 

उसके नियमों की रक्षा करना 

पति को ही ईश्वर माने वो 

धर्म है ये उन पवित्र स्त्रियों का ।


साध्वी स्त्री को चाहिए कि 

पति की इच्छाओं को पूर्ण करे 

विनय, इन्द्रिय संयम, प्रिय वचनों से 

प्रेमपूर्वक पति की सेवा करे ।


जो पति की भगवान समझकर 

सेवा करे पतिपरायण हो 

पति वैकुण्ठ को प्राप्त करता 

लक्ष्मी जी समान रहे उसके साथ वो ।


वेददर्शी ऋषि मुनियों ने 

अनुसार मनुष्य के स्वभाव के 

धर्म की व्यवस्था की है 

अलग अलग युग में उन्होंने ।


कल्याणकारी लोक परलोक में 

वही धर्म है मनुष्य के लिए 

किसी वर्ण का लक्षण हो दूसरे वर्ण में तो 

उसी वर्ण का उसे समझाना चाहिए ।



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