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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -१३३; पुंसवन व्रत की विधि

श्रीमद्भागवत -१३३; पुंसवन व्रत की विधि

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राजा परीक्षित ने पूछा, भगवन 

बतलाया जो पुंसवन व्रत ये 

कहा की विष्णु प्रसन्न हों इससे 

विधि इसकी अब बतलाइये मुझे।


शुकदेव जी कहें, हे परीक्षित 

सम्पूर्ण कामनाएं पूर्ण करता ये 

स्त्री को चाहिए कि वो इसे 

आरम्भ करे पति की आज्ञा ले।


मरुदगणों के जन्म की कथा 

सुनकर, ब्राह्मणों से आज्ञा ले 

प्रतिदिन सवेरे स्नान कर शुद्ध हो 

श्वेत वस्त्र, आभूषण धारण करे।


प्रात: कुछ भी करने से पहले 

पूजा करे लक्ष्मी नारायण की 

कहे कि नमस्कार आपको 

फिर उनसे प्रार्थना करे यही।


भगवन! आप सकल सिद्ध स्वरूप हैं 

स्वामी हैं समस्त विभूतिओं के 

सर्वशक्तिमान आप हैं 

स्वीकार करो हमारी प्रार्थना ये।


 माता लक्ष्मी जी!, आप तो 

भगवान की अर्धांगिनी, महामाया हैं 

भगवान के गुण निवास करें आपमें 

आपको मेरा नमस्कार है।


परीक्षित, इस प्रकार स्तुति कर 

मन्त्र के द्वारा प्रतिदिन स्थिर चित से 

विष्णु भगवान का आह्वान करें 

फिर पूजन और हवन करें।


सम्पत्तियां प्राप्त करना चाहता जो 

पूजा करें लक्ष्मी नारायण की 

अभिलाषाओं को पूर्ण करते दोनों 

और वो हैं श्रेष्ठ वरदानी।


भगवान को शाष्टांग दण्डवत करे 

फिर इस स्तोत्र का पाठ करे 

हे लक्ष्मी नारायण, आप तो 

अंतिम कारण हैं इस जगत के।


आपका कोई कारण नहीं है 

लक्ष्मी जी माया शक्ति आपकी 

पार पाना इनका कठिन है 

अधीश्वर इस महामाया के आप ही।


आप ही स्वयं परमपुरुष हैं 

तीन गुणों की अभिव्यक्ति लक्ष्मी जी 

आप उन्हें व्यक्त करने वाले 

और उनके भोक्ता आप ही।


आप समस्त प्राणीओं की आत्मा 

लक्ष्मी जी शरीर, इन्द्रियां, अन्तःकरण हैं 

मेरी अभिलाषाएं पूर्ण करें 

आप त्रिलोकी के परमेश्वर हैं।


परीक्षित, भगवान की पूजा के बाद फिर 

साक्षात् भगवान समझ पति को 

उपस्थित करे उनकी सेवा में 

प्रेम से, प्रिय वस्तु उनकी जो।


पति का भी यह कर्तव्य है 

प्रिय पदार्थ लाकर पत्नी के 

उसको दे दे और छोटे बड़े उसके 

सब प्रकार के काम करता रहे।


परीक्षित, पति, पत्नी में से एक भी 

कोई काम नहीं कर पाए तो 

उनमें से कोई एक भी काम करें 

उसका फल होता दोनों को।


इसलिए यदि पत्नी किसी कारण 

अयोग्य हो तो उस समय में 

करना चाहिए अनुष्ठान पति को 

इस व्रत का विष्णु जी के।


भगवान विष्णु का ये व्रत है 

नियम लेकर नहीं छोड़ना चाहिए 

इस व्रत का प्रसाद स्त्री को

 सौभाग्यवान करने वाला है।


इस व्रत का पालन करकर स्त्री 

संतान, यश, गृह प्राप्त करती 

उसका पति चिरायु हो जाता 

स्त्री को मिले सौभाग्य, संपत्ति।


व्रत का अनुष्ठान करें कन्या 

शुभलक्षण युक्त पति प्राप्त हो 

विधवा व्रत से निष्पाप हो जाये 

वैकुण्ठ को चली जाये वो।


बच्चे मर जाते हों जिस स्त्री के 

चिरायु पुत्र की प्राप्ति हो 

कुरूप को श्रेष्ठ रूप मिल जाता 

रोगमुक्त शरीर रोगी को।



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