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Archana kochar Sugandha

Tragedy

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Archana kochar Sugandha

Tragedy

शक्ति प्रदर्शन

शक्ति प्रदर्शन

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अभी-अभी यहाँ जिंदगियाँ आबाद थी 

हँसती-मुस्कुराती, चहल-कदमी करती शाद थी 

अब हैं धुआँ-ही-धुआँ और राख के ढेर 

नंगी नाचती मौत से जिंदगी की फरियाद थी। 


मेहनत से खड़े किए आशियाने ढह गए 

लहू पानी की तरह बह गए 

लाशों के ढ़ेर पर कौन सा जहां बसाओगे

सवाल अनकहे रह गए ।


शक्ति प्रदर्शन में बबूल बो रहे हैं 

मासूम फूल रो रहे हैं 

मौन सारी फिजाएं हैं 

यह बुद्धिजीवी खामोशी से कहाँ सो रहे हैं। 


वतन परस्ती में चिरनिद्रा में सोने वाले 

लौटकर वापस नहीं आएंगे 

बेकसूरों की बलिदानी पर 

गीत शहादत के अब कौन गाएंगे…? 


उजड़ गया है जिनका सँसार 

वह कैसे चैन से सोएंगा 

बारूद से छलनी धरा की 

छाती पर अब कौन रोएंगा…? 


धरा की स्वर्णिम आभा रक्त रंजित है

सदाबहार बसंत के रंग से वंचित है

वह भी अब बरसती है आग और ओला

मानवता की दानवता पर चिंतित है । 


अमन-चैन के शहनशाहों का सीना कितना फौलादी हैं

मची है त्राहि-त्राहि दूर तलक फैली बर्बादी हैं 

शक्ति प्रदर्शन के खेल-खेले में

यह लिखी कौन-सी तस्वीर आजादी है। 


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