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Akshat Garhwal

Abstract

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Akshat Garhwal

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शक करते हो ?

शक करते हो ?

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खुला ना रहने देते उसको

जंजीरों से बांध रखा है

नारी की पवित्रता का तुमने

कैसा यह सम्मान रखा है


लगा बंदिशें नारी पर

किस बात का आखिर हक रखते हो

उठाकर उंगली आंख दिखाकर

किस बात का आखिर शक करते हो ?


घर के सारे काम वो करती

मान तुम्हारी बात कर रखती

सुनकर भी कुष्ठ बात तुम्हारी

ख्याल तुम्हारा ध्यान से रखती


पर हाथ उठा कर उस पर तुम

अपराध से कब तक बच सकते हो

उठाकर उंगली आंख दिखाकर

किस बात का आख़िर शक करते हो ?


समय जो बदला नारी बदली

अब काम वह घर से दूर भी करती

वह मां भी है वह बहन किसी की

मर्यादा वह शान से रखती


परिवार का पोषण करने वाली

दफ़्तर में थोड़ी देर रही तो

कैसे कैसे दोष बताकर

अपनी सोच को गंदी क्यों करते हो ?

उठाकर उंगली आंख दिखाकर

किस बात का आखिर शक करते हो ?


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