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Akshat Garhwal

Others

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Akshat Garhwal

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पराई हूं।

पराई हूं।

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मां का घर मैं छोड़ के

पिया तेरे घर में आई हूँ

जिन खुशियों में खेला करती थी

वह खुशियां लेकर आई हूँ

अपने घर की लक्ष्मी लेकर

तेरे आंगन में आई हूँ

इतना सब करने के बाद भी

मैं आज भी कैसे पराई हूँ ।


नम आंखों से छोड़ा बाबुल

कैसा मै स्वागत पाई हूँ

कड़वी बोली को सहने पर भी

मिठास प्रेम की लाई हूँ

गिला ना शिकवा कोई करें

मैं सद्भाव ही लाई हूँ

परिवार का सुख दुख चाहने वाली

मैं अब भी कैसे पराई हूँ ।


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