शजर
शजर
इस तरह जीने को मजबुर हुए जाते हैं लोग
झुकाये एकबार सिर जो फिर न उठाते हैं लोग
एक होड़ सी लगी है छुपाने मे लोगो की
कोई जख्म, कोई आँसू तो कोई होठ सिलते है लोग
चौराहे का बुढा शजर कब का कट चूका है
अब छांव के सहारे को तरसते हैं आते जाते लोग
सुनासुना वीरान पड़ा है इलाका यहाँ
मिलने मिलाने से अब घबराते जाते हैं लोग
वक्त मे खटास कुछ ऐसी आयी
नाते रिश्तों से अब ऊबने लगे हैं लोग
जिन्दा रहने से कुछ भी हासिल न हूआ 'नालन्दा'
शमशानों के चक्कर लगाये जाते हैं लोग