शिव शंभु
शिव शंभु
हे नीलकंठ! महादेव शम्भु
अज्ञानी हूँ मैं ज्ञान नहीं है,
मुझे जग-जंजालों की
हे नाथ मेरे पहचान नहीं है।
शरण तिहारी आया हूँ,
कर दो मेरा भी उद्धार
भक्ति भाव से भरा मेरा मन,
बस तुमको रहा पुकार।।
हलाहल का प्याला पी
जग को तुमने अमृतपान दिया,
हे नाथ, मेरे कितने ही पापियों को
है चरणों में अपने स्थान दिया।
मैं भी करुणा का प्यासा,
दया दृष्टि की लगा रहा हूँ आस
कर दो मेरा भी उद्धार,
भक्तिभाव से भरा मेरा मन,
बस तुमको रहा पुकार।।
