शिशिर
शिशिर
कैसी लुका छिपी
खेले धरती आकाश में
छुप जाता है सूरज कभी
बादलों की ओट।
बर्फ औऱ कोहरे की
घनी रजाई ओढ़
सो जाती है धरती भी
ऊंघते पेड़ व पत्ते।
कंपकपाते
चाँद भी ठिठके
दुबके जीव जंतु प्राणी
सूरज को ताकते
ओस से नहाई घास।
धूप को निहारते
लेती अंगड़ाई
सूरज को पुकारते
शिशिर में सूरज।
सबको प्यारा लगे
ले न ले ये जान ठंड
आग भी तापते
ऊष्मा औऱ ताप का
रूह में संचार हो।
जतन करे इतना
प्राण जैसे बचे
ठिठुरती स्याह रातें
कब बीत जाए।
सुबह की किरण
दिल को छू जाए।
