शिशिर प्रभात
शिशिर प्रभात
वो शिशिर की प्रभात
वो गहराता अति कोहरा
हर दिशा हो गई ध्वल
दिखे अति उज्ज्वल।
घर से निकलने को मन न चाहे
रजाई में दुबक सुबह बिताएँ
सूरज न निकले ,कीणियाँ भिगाएँ
सुबह से शाम बस ठंड ही सताए।
धरती अँबर सब एक हो गए
मानो धुँध - चादर ले सो गए
ओस से कण - कण भीग गए
ठिठुरते किसान खेत को चले ।
सूर्य का हर कोई करता इंतज़ार
दिखे किरण मिले अमृत धार
कलियाँ ,पत्तियाँ सब मुस्कुरा कर
सूयोर्दय हुआ जीवन अमृत बनकर।
