शिक्षक कौन??
शिक्षक कौन??
अंकुर निकलकर बीज से, और
नई कोंपल तने से फूट के,
बनाना चाहते है नया जहाँ
जिसमें हो उनकी चाहत का आसमान
लेकर के कुछ ऐसे ही सपने
एक नन्हा शिशु कोख मे पलता है
तोड़कर अपना पहला बंधन
इस धरती पे पाव तब धरता है
कहते है तब सर्व प्रथम
वो अपने शिक्षक से मिलता है
प्रथम शिक्षिका, जननी हमारी
उसे प्रथम गुरु वरण करता है।
जिस उंगली को पकड़कर बालक
सरपट आगे बढ़ता है
जिनकी नसीहत भारी बातों को सून
अपना पग निर्धारण करता है
उस युगदृष्टा पिता श्री को ये जहाँ
शिक्षक दूसरा कहता है।
स्कूल की चारदीवारी
जहाँ पहला अक्षर शिक्षा का जाना
उस युग के अंदर का ज्ञाता
शिक्षक अगला होता है
पल प्रतिक्षण जब कदम बढ़ाकर
मैंने दुनिया को जाना
बातों की नजाकत को समझ
शायद शिक्षक पहचाना।
ये वो नहीं, जो हमको केवल
अक्षर ज्ञान करवाते है
ये वो भी नहीं जो हमको हमारा
भविष्य प्लान बताते हैं
ये वो नहीं जो साथ में अपने
टीचर की पदवी लगाते है
ये वो नहीं जो डर की छड़ी से
हमे पाठ सिखलाते है.
समझ बुझ इस उन्मुक्त हृदय में
एक तस्वीर उभर आई है
नई लोही की किरणों सी
एक कविता फूट आई है
शिक्षक कोई ड्यूटी नहीं
ये तो एक सम्मान है
ये हर उस इंसान को सजता है
जिससे कुछ सीखता ये जहाँ है।
