शहादत
शहादत


उन बेटों की कहानी याद करते-करते रो पड़ती हूं
जिसकी कुमकुम बिंदी कभी वापस लौट नहीं पाई
पायल झुमके चूड़ी ले गई कुर्बानी की यमराई
कई बहनों की राखी जल गई बर्फानी तूफानों में
न जाने कितने सपने दफन हुए पहाड़ों के दरारों में
कोई मूल्य न दे सकता है उन जज्बाती बलिदानों की
मां की आंखों से बहते अश्रु से सातों सागर हार चुके हैं
मेहंदी लगे हाथों ने अपने ही मंगलसूत्र उतारे हैं
बेटे का शव जब आया सुनी आंगन में
बूढ़ी मां की आंखें भर आई दूध उतरा फिर छाती में
अपने लहू से टीका कर हम सब की हिफाजत करते हैं
अमर शहीद उन बेटों को शत शत नमन हम करते हैं