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Sambardhana Dikshit

Tragedy Inspirational

4  

Sambardhana Dikshit

Tragedy Inspirational

शेरशाह की गाथा

शेरशाह की गाथा

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देश की सीमा पर बहुत जोखिम भरा था

संकट से वीर ने पार करवाया था

वो दृश्य रूह कांपने वाला आंखों से ना ओझल होने पाया था

पाक सेना को बड़ी मुश्किलों से मार गिराया था

जीती जंग उसने और अपना तिरंगा लहराया था 

ये "दिल मांगे मोर" के नारे से वो शिखर गूंज उठा था

ज़ोर कम ना हुई पाक सेना की उसने फिर एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया था

थमी ना थी उस वीर की तलब अब फिर इस चोटी को भी तो बचाना था 

लगी ज़ोर दुश्मनों की तो विक्रम ने भी कम ना शोर मचाया था 

जीती जंग उस चोटी की भी पर दांव इस बार खुद को लगाया था

बजाय रखा मान अपना सेना ने और तिरंगा वहां लहराया था 

मगर चल ना सकी सांसे उसकी जिसने ये साहस उठाया था

अपने प्राणों की आहुति देकर धरती मां का मान बढ़ाया था

उस वीर की शहादत में हम भारतीयों ने भी शीश झुकाया था

कह गया था पिछली मुलाकात में की लौट के आने वाला था 

सांसों में लौटे या लिपट के तिरंगे से मगर वापस ज़रूर आने वाला था

आज भी कारगिल की पहाड़ियां तुम्हारी शहादत की याद दिलाती हैं

सच में भारतीयों की आंखें नम हो जाती हैं, आंखें नम हो जाती हैं...

भारत माता के लिए हँसते हँसते अपने प्राण न्योछावर कर गया।

परमवीर तो घर ले आया, पर वह वीर खुद न लौट पाया।

ज़िंदगी लम्बी ना सही पर उसे बड़ा बनाया था 

दृढ़ विश्वास और ईमानदारी का जीवन विक्रम ने जिया था 

मृत्यु सर्वोच्च बलिदान है शेरशाह का 

इस पर हर शीश झुक जाता है 

लबों पे नाम शेरशाह का आयेगा 

पर अब दिल मांगे मोर का नारा ना गूंजेगा 

युग युग तक ये धरा उसकी वीर गाथा को स्मरण करता रहेगा 

हर बार शीश विक्रम बत्रा के बलिदान पे ही झुक जायेगा 

अगर मिले मौका कभी जीने का उस महान जीवन को 

मैं भी वीर जैसा भारत माता पे दिल - ओ - जान लूटा आऊंगा

हर चोटी पे फहरा के लहरा के ऊंचा अपना तिरंगा 

मैं भी मां का नाम ऊंचा कर के आऊंगा।  


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