सफ़ेद कौए की कहानी
सफ़ेद कौए की कहानी
चलो आपको सुनाता हूँ सफ़ेद कौए की कहानी,
भेजा था ऋषिमुनि ने अमृत की तलाश में,
दी थी उसे एक बात की चेतावनी,
कहा था ढूंढ ना है सिर्फ तुम्हे,
पीना नहीं उसे मुंहज़ुबानी ।
अगर गलती से पी लिया,
तो होगा गलत अंजाम,
मिलेगा तुम्हे इसका कुफल,
शायद खो देने पड़े तुम्हे अपने प्राण ।
बात ध्यान में रख,
कौआ तो उड़ चला,
सालो के परिश्रम के बाद,
उसे अमृत का पता चला ।
ऋषिमुनि के वचन उसे याद आए,
पर अपनी लालसा वो रोकना सका,
पी लिया उसने अमृत का घूंट,
भरोसे की डोर फिर जोड़ ना सका।
हुआ पछतावा गया वापस ऋषिमुनि के पास,
अपनी गलती की उसने बात बताई,
आवेश में आके ऋषि ने उसे श्राप दे दिया,
कौए ने आखिर तक अपनी जान की गुहार लगाई ।
ऋषि ने कहा,
आजके बाद,
पूरी मानव जाती तुमसे घृणा करेगी,
सारे पंछियो में केवल तुम्ही होंगे,
जिसकी सारी मानव जाती निंदा करेगी।
क्युकी उसने अमृत का पान किया था,
वो कभी स्वाभाविक मौत नहीं मर सकता,
भाद्रपद के महीने के सोलह दिन,
उसे पित्रों का प्रतीक मान आदर किया जाएगा,
आखिर श्राप मिला है उसे,
वो आकस्मित मौत ही मारा जाएगा ।
ऋषि ने अपने पास पड़े पानी में उसे डुबोया,
सफ़ेद से काला रंग उसने यहाँ से हैं पाया ।