सदा रहो मन के मीत
सदा रहो मन के मीत
चाहता हूं ऐसे तुम को
जैसे बाती संग हो दीप..!
रहती आँखों में मेरे तुम
जैसे रक्खे मोती को सीप..!!
बिन तुम्हारे व्यर्थ जीवन
बिन तुम्हारे लगे न मन..!
साथ छूटे न हमसफर
तुम सदा रहो मन के मीत..!!
चाहता हूं ऐसे तुम को
जैसे बाती संग हो दीप..!
- शुभम आनंद मनमीत

