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Shubham Anand Manmeet

Romance Classics Inspirational

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Shubham Anand Manmeet

Romance Classics Inspirational

मन की गांठें

मन की गांठें

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मैं शब्दों का हूँ सौदागर, भावों को तौल रहा हूँ।

आज लहू से मन की गाँठें, धीरे से खोल रहा हूँ।।


छंद-अलंकारों की भाषा, न करूँ मंचों की आशा।

तन की बातें समझें मन से, अंतर्मन की परिभाषा।

मीठी यादें अपने भीतर, होले-से घोल रहा हूँ।

आज लहू से मन की गाँठें, धीरे से खोल रहा हूँ।।


जीवन-पथ पर चलता साथी, संग दिया ओ बाती।

वाणी मधुमय रस बरसाती, कंठ सदा ही मितभाषी ।

खट्टे-मीठे अनुभव के ही, फिर समय टटोल रहा हूँ।

आज लहू से मन की गाँठें, धीरे से खोल रहा हूँ।।


Shubham Anand Manmeet


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