सच्ची मोहब्बत
सच्ची मोहब्बत
ना जाने इश्क़ की किन
गलियों से मैं गुज़रता हूँ,
अक्सर पास् होने पर झगड़ता हूँ,
वहीं दूरियों में हर पल मरता हूँ,
पर उसे खोने से बहुत डरता हूँ,
क्यूंकि आज भी मैं उससे
बेइंतहा मोहब्बत करता हूँ।
ना जाने इश्क़ की किन
गलियों से मैं गुज़रता हूँ,
अक्सर पास् होने पर झगड़ता हूँ,
वहीं दूरियों में हर पल मरता हूँ,
पर उसे खोने से बहुत डरता हूँ,
क्यूंकि आज भी मैं उससे
बेइंतहा मोहब्बत करता हूँ।