सच्चा प्रेम
सच्चा प्रेम
प्रेम त्याग है,
हर बंधन से परे हैं,
जो बस देना चाहता है,
लेना कुछ नहीं,
इतना गहन है
जो जी लिया इसको,
बस निर्मल हो जाता है,
कर स्नान इस पावनता में,
अन्तः करण आनंदित हो जाता हैं,
वह प्रेम तो मीरा सा है,
जहाँ हर ओर बस
प्रियतम ही नज़र आता हैं,
हो ऐसा फिर प्रेम समर्पण,
प्रियतम ही दौड़ा चला आता हैं,
न कोई बंधन बांधता फिर,
बस दिव्यता का दर्शन हो जाता है,
बस दिव्यता का दर्शन हो जाता हैं।