सच
सच
बार - बार पूछने पर भी
पुचकारने पर
कस के अपने आँचल में
छुपाने पर भी
उसकी सागर सी आँखों से
निर्झर धारा बहती ही जा रही थी
पल दो पल के लिए चुप होती
फिर न जाने क्या वापस से सोच कर
जोर जोर से रोने लगती
माँ का दिल है
जानने को बेज़ार हो रहा है
फिर सहलाया.. प्यार से बहलाया
बता न बेटा क्या हुआ है
बता न बेटा किसी ने कुछ कहा है
कुछ साहस जुटाया उसने
साँसों को सामान्य करके
भर्राए हुए गले से सिर्फ इतना बोल पाई
माँ तुम तो कहती थी हमेशा सच बोलो
पर क्या सच बोलना
औरों को इतना कष्ट देता है
इतना कष्ट देता है
बताओ माँ औरों के 'मन' को
इतना कष्ट क्यों देता है