सच झूठ एक फसाना
सच झूठ एक फसाना
ना खबर की क्या सही क्या गलत,
उलझने बिखरी है चारो तरफ।
चेहरों पर नकाब है,
दिलों में फरेब बेहिसाब है,
दुनिया के कायदे भी अजीब है,
यहा सच्चाई हार जाती है और झूठ घूमता आज़ाद है।
ना खबर की क्या सही क्या गलत,
उलझने बिखरी है चारो तरफ।
सच कहूं तो अब मन थक सा गया है,
सच और झूठ की कश्मकश में अब दम घुटता है,
फरेब की वजह से हजारों रिश्ते बनते उजड़ते है,
सच झूठ के बीच की दूरी तय करने में सालो लग जाते है।
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ना खबर की क्या सही क्या गलत,
उलझने बिखरी है चारो तरफ।
कुछ लम्हे हकीकत कुछ लम्हे फसाने है,
कोशिशों से हमे अब रिश्तों के ताने बाने फिर बनाने है,
कुछ रिश्ते सच्चे है,
कुछ रिश्ते कच्चे धागों से है।
ना खबर की क्या सही क्या गलत,
उलझने बिखरी है चारो तरफ।
माना कोई किस्सा राहों में कही छूटा है,
बेपरवाही ने हमारी हमसे कोई नगमा लूटा है,
सच झूठ क्या है,
सच नगमा है किसी पीर का
और झूठ एक पीड पुराने ज़ख्म की है।