सब्र
सब्र
सुना है वहाँ तक नहीं जाते हैं
पैग़ाम दिल के
जहाँ दिल लगाने का कारोबार
दिमाग से किया जाता है।
वो बात करते हैं मेरी
अपनी ज़ुबाँ से
ज़ुबाँ को क्या,
मसला तो दिल का है...
ज़ुबाँ से बयाँ किया नहीं जाता है।
आज देखकर उनकी बाँहों में
किसी और को ,
बेशक़ टूट गया है दिल मेरा... तो क्या
दिल पर मरहम भी तो
नहीं किया जाता है।
रिवाज़-ए-मोहब्बत हमने भी
निभाई है बहुत
रात रात भर जाग तस्वीरें उनकी
बनायी हैं बहुत।
कई कोस निकल आया हूँ
दूर उस दुनिया से
कि थक चुकीं पलकों पर
आंसुओं का बोझ
और लिया नहीं जाता है।