सावन में विरह गीत - हाइकू
सावन में विरह गीत - हाइकू
बरसा नीर
बादलों से निकल
धरती पर
सावन आया
याद प्रियतम की
आई बहुत
बरसा नीर
कपोलों पर गिरा
अखियों से भी
साजन आओ
तुम बिन बेदम
मौसम यह
राग मल्हार
चुभे मन भीतर
गातीं सखिंयां
बिन सजना
कैसे नाचूं अब तो
इस सावन
निर्दय मेघ
संदेशा देते नहीं
पियतम को
विरह मारी
संगनी कहीं दूर
याद करती
अब दिवस
बङे सालों से ज्यादा
लगते मुझे
रात तो अब
करबट बदल
कटती नहीं
अस्थि पंजर
कमजोर बहुत
मैं हूं लगती
कैसा रोग है
वैद हैं थक गये
इलाज कर
प्रेम का रोग
यह हुआ मुझको
कब ठीक हो
आजा सजना
तुम ही वैद मेरे
मम जीवन।
